सरकार अच्छा खासा रूपया खर्च कर भी अस्पताल को नहीं रखवा पा रही साफ सुथरा
- जिला अस्पताल में सफाई व्यवस्था बदहाल, संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ा
- अस्पताल प्रबंधन बायोवेस्ट का भी नहीं करवा पा रहा निस्तारण
- जगह-जगह गंदगी के ढेर, फर्श पर बिखरे नजर आती है ग्लूकोज की खाली बोतलें व सीरिंज
- पिछले चार माह से अस्पताल में किसी अधिकारी ने नहीं किया निरीक्षण, मरीजों को अपने हाल पर छोड़ा

(अस्पताल परिसर में पार्किंग की में पड़ा गंदगी का कंटेनर)
शिवगंज। एक पुरानी कहावत है कि जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसूरी बजा रहा था। यह कहावत शिवगंज के जिला अस्पताल पर सटीक साबित होती नजर आ रही है। प्रमुख चिकित्सा अधिकारी की लापरवाह कार्यशैली अस्पताल में आने वाले मरीजों के लिए दुखदायी साबित हो रही है। सफाई व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है कि यहां भर्ती मरीजों सहित उपचार के लिए आने वाले मरीजों के सिर पर संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है।


ऐसा नहीं कि सरकार की ओर से जिला अस्पताल को सफाई के लिए जो बजट मिलता है वह नहीं मिल रहा है। बताते है कि अस्पताल को केवल सफाई के लिए अच्छा खासा बजट मिल रहा है, मगर हालात देख यह नहीं लगता कि अस्पताल प्रशासन यह राशि सफाई के लिए खर्च कर रहा है। अस्पताल के ऐसे हालातों के लिए प्रशासन के आला अधिकारी भी उतने ही दोषी है जितने पीएमओ। पिछले करीब चार माह से किसी आला अधिकारी ने अस्पताल की सूध नहीं ली है। परिणामस्वरूप खामियाजा मरीजों और उनके परिजनों को भुगतना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि शिवगंज के सामुदायिक अस्पताल से जिला अस्पताल में क्रमोन्नत होने के बाद कार्य भी बढा है। जानकारी मिली है कि अस्पताल की सफाई के लिए पहले तो सामुदायिक अस्पताल के लिए जितना बजट मिलना चाहिए उतना ही मिल पा रहा था। सूत्र बताते है कि पिछले तीन चार माह से अस्पताल को जितना जिला अस्पताल को बजट मिलना चाहिए उतना मिल भी रहा है। मगर, सफाई कर्मचारी उतने ही काम कर रहे है, जितने सामुदायिक अस्पताल के समय कार्य कर रहे थे। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि जब बजट बढ़ा तो कर्मचारी क्यों नहीं बढ़े और यदि कर्मचारी बढाए गए तो फिर सफाई व्यवस्था ऐसी बदहाल क्यों है। प्रशासन यदि इसकी जांच करें तो कई परते खुल सकती है।
जगह जगह फैला रहता है बायोवेस्ट, संक्रमण का खतरा बढा


( वार्डों में फैली गंदगी)
जिला अस्पताल में सफाई व्यवस्था इस कदर बदहाल है कि वार्ड में जहां देखों कचरा बिखरा नजर आता है। मरीजों को लगाई जाने वाली ड्रीप की बोतलें जहां तहां बिखरी नजर आती है। हालात यह है कि वार्ड में रखी बायोवेस्ट की बाल्टियां तक समय पर खाली नहीं होती, क्योंकि वहां कोई सफाई कर्मी होता ही नहीं। ऐसे में मरीजों व उनके परिजनों के सिर पर संक्रमण का खतरा भी मंडराता रहता है। कई बार सफाई कर्मचारी बायोवेस्ट को यूं ही खुले में जला देते है।

(अस्पताल के पीछे नवनिर्मित बिल्डिंग के पास)
ठेकेदार द्वारा अपने निर्माण कार्य के लिए बनाई गई टंकी में गंदा पानी भरा हुआ है जिस पर ढक्कन तक नहीं है जिससे कभी भी अनहोनी हो सकती है । कई जगहों पर बायोवेस्ट को पोटली में बंद कर डाल दिया गया है। अस्पताल में जहां दिन में दो बार सफाई होनी चाहिए, वहां बडी मुश्किल से एक बार ही हो पाती है। अस्पताल परिसर में भी जहां देखों गंदगी का आलम है। वैसे भी इन दिनों मौसमी बीमारियों का प्रकोप है,ऐसे में मरीजों की संख्या में भी खासा इजाफा हुआ है। चिकित्सक समय पर नहीं मिलते वह अलग बात है, मगर मरीज जब तक अस्पताल में रहता है, उसके लिए अस्पताल परिसर नरक की अनुभूति से कम नहीं है।
एक दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात
वैसे तो प्रशासनिक अधिकारियों की नजरें इनायत नहीं होती। जब कभी भी होती है, अस्पताल प्रबंधन को पहले से ही पता चल जाता है कि आज अमूक अधिकारी निरीक्षण के लिए आ रहे है। फिर क्या है, देखते ही देखते फिजा बदलनी शुरू हो जाती है। संबधित अधिकारी या जनप्रतिनिधि अस्पताल जब तक पहुंचता है, तब तक सारी व्यवस्थाएं चाक चौबंद हो जाती है। आकस्मिक निरीक्षण पर पहुंचे अधिकारी भी सब कुछ अच्छा देख अपनी खानापूर्ति कर चले जाते है। उसके बाद दूसरे दिन से हालात फिर से वैसे ही होकर रह जाते है।

(अस्पताल परिसर के पिछे)
बहरहाल, सरकार और सरकार के नुमाइंदे शीघ्र ही जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए ठोस कदम नहीं उठाते है तो संभव है आने वाले दिनों में उन्हें इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि परेशान जनता जब आवाज उठाना बंद कर देती है तो समझ लेना चाहिए कि उसमें आक्रोश का ज्वार उमड़ रहा है, क्योंकि वह अपनी उम्मीदों के विपरित अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगता है।

अस्पताल के अंदर शौचालय के पास
