प्राइवेट अस्पताल व क्लीनिक के बायो वेस्ट का निस्तारण नहीं होने से वायु प्रदूषण बढ़ा

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शिवगंज – सुमेरपुर का पॉल्यूशन ( प्रदूषण ) बढ़ा जिम्मेदार मौन

सुमेरपुर। सुमेरपुर शिवगंज में प्राइवेट अस्पताल में क्लिनिक के बायो वेस्ट का निस्तारण सही जगह व‌ सही तरीके से नहीं होने के कारण सुमेरपुर शिवगंज का वायु प्रदूषण दिल्ली व जयपुर से भी अधिक बढ़ रहा है शाम होते-होते तो इतना बढ़ जाता है की आम आदमी को सांस लेना भी दुबार हो जाता है

नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार शिवगंज सुमेरपुर का प्रदूषण कई गुना अधिक है।
सूत्र से ज्ञात हुआ है कि निजी क्लीनिक एवं हॉस्पिटल का बायो वेस्ट (गिला – सुखा) जो निकलता है वह घर-घर कचरा संग्रह करने वाले टेंपो में डाल दिया जाता है और वह बायो वेस्ट पालिका के कचरा संग्रह स्थान पर डाल दिया जाता हे।
अस्पताल व लैब ( लेबोरेटरी जांच ) से निकलने वाला बायो वेस्ट जिसका कहां निस्तारण करना है उसका लाइसेंस एवं वायु प्रदूषण का अनुज्ञा पत्र पर्यावरण विभाग द्वारा लेना अनिवार्य होता है लेकिन अधिकांश क्लीनिक वाले इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं सीएमएचओ को जानकारी होते हुए भी कोई कार्रवाई नहीं करना एक प्रश्न वाचक चिन्ह है। शिवगंज सुमेरपुर में ब्लॉक सीएमएचओ व जिला अस्पताल भी है लेकिन वह भी इन झोलाछाप डॉक्टर वह क्लिनिक पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाते।

विश्व गांव और विकास के नाम पर फैलाई गई गंदगी का प्रभाव अब स्थानीय नहीं बल्कि वैश्विक हो गया है। अविकसित या अर्धविकसित राष्ट्र ज्यादा औद्योगीकरण किए बिना भी प्रदूषण के शिकार हैं। पिछले दशकों में अपनी विकास प्रक्रिया को तेज गति देकर विकसित देशों ने वायुमंडल में विषैली गैसों का गुबार छोड़ा और जब परिणाम सामने आने लगा तो हाय तौबा मचाना शुरू किया। जवाब में विकासशील देशों का तर्क यह ठहरा कि मुझे भी उतना ही आगे आने दो फिर पर्यावरण संरक्षण की बात सोचेंगे। विकसित देश अब उपदेशक हो गए हैं लेकिन पर्यावरण को किए गए नुकसान की भरपाई के लिए जिम्मेदारी लेने से भागते हैं। पर्यावरण के लिए आई अंतर्राष्ट्रीय चेतना के बावजूद आज भी अविकसित या अल्प–विकसित देशों की बहुत बड़ी जनसंख्या कम आबादी वाले औद्योगिकृत राष्ट्रों द्वारा फैलाए जा रहे परमाण्विक, वायुमंडलीय या भूमि प्रदूषण की सजा भोगने को अभिशप्त है। जो भी हो, विकसित देशों पर दोषारोपण कर अविकसित राष्ट्र भी अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते।

प्रदूषण की समस्या न ही एक दिन में पैदा हुई है और न एक दिन में खत्म होने वाली है। समय और परिस्थिति से निर्मित समस्याओं की डिबिया खुलने पर कोई जिन्न बाहर नहीं आने वाला है, जो ‘क्या हुक्म है आका?’ कहकर पलक झपकते ही समस्याओं को सुलझा दे, और हम चैन की नींद सो जाएं। पर्यावरण सुधार के लिए अगर समुचित प्रयास में हम विफल रहते हैं तो इससे अच्छा है कि ‘आ अब लौट चलें’ वाले नारे को बुलंद करें।
अपने चारों ओर के परिवेश को हमने इस कदर छेड़ा है कि बात अगर पर्यावरण की उठती है तो प्रदूषण का सवाल अपने आप ही आगे आ जाता है। चारों ओर सुनी जाने वाली यह ऐसी ‘वेताल पचीशी’ है, जिसमें लाशों को ढोने वाला कोई एक विक्रम नहीं बल्कि हम सभी हैं और सही उत्तर की प्रतीक्षा में वेताल हमारे साथ-साथ भी चल रहा है। बात प्रदूषण की उठे, तो लोग सामाजिक, सांस्कृतिक या भाषायी प्रदूषण की बात भी करते हैं। सामाजिक मान्यताओं को झकझोरने वाले व्यवहारिक प्रदूषण के दायरों का तो कोई आकलन नहीं। किंतु पर्यावरण प्रदूषण का क्षेत्र आज बढ़ता ही जा रहा है।

प्रदूषण क्या है…..?

पर्यावरण के किसी भी तत्त्व में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीव जगत् पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्त्वपूर्ण योगदान है। यहां तक मानव की वह सामान्य गतिविधियां भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। परंपरागत रूप से प्रदूषण में वायु, जल, ध्वनि, जमीन, मृदा, प्राणीजगत्, रासायनिक, रेडियोधर्मिता आदि आते हैं। यदि इनका वैश्विक स्तर पर विश्लेषण किया जाए तो इसमें प्रकाश आदि का प्रदूषण भी सम्मिलित हो जाता है। गंभीर प्रदूषण उत्पन्न करने वाले मुख्य स्रोत हैं, रासायनिक उद्योग, तेल रिफायनरीज़, आण्विक केंद्र, कूड़ा घर, प्लास्टिक उद्योग, कार उद्योग, पशुगृह, दाहगृह आदि। आण्विक संस्थान, तेल टैंक, दुर्घटना होने पर बहुत गंभीर प्रदूषण पैदा करते हैं। प्रदूषण विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। जैसे कैंसर, अलर्जी, अस्थमा, प्रतिरोधक बीमारियां आदि।

Rajasthan Tv 24
Author: Rajasthan Tv 24

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